चंद्र, ये हमारी पृथ्वी का प्राकृतिक उपग्रह है, जो हमसे 384,000 किलोमीटर दूर है। चाँद का व्यास 3474km है और यहा का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी के मुकाबले छे गुना कम है। इसी वजह से निल आर्मस्ट्रॉंग जब चाँद पर चले तो उछल उछल कर चल रहे थे। वहा पृथ्वी की तरह चल पाना संभव नहीं। यहा दिन मे तापमान 100 डिग्री सेल्सियस और रातको -180 डिग्री सेल्सियस तक हो जाता है। चंद्रमा पर वायुमंडल नही है। और आकार मे गोल दिखने वाला हमारा चाँद वास्तव मे अंडाकार है।
पूर्णिमा को पूरा दिखने वाला चाँद दरसल हमे 57% ही दिखता है बाकी का 43% तो हम उसे देख ही नही पाते। चंद्र पूर्णिमा से अमावस्या (भारतीय कैलेंडर के अनुसार) तक पृथ्वी की परिक्रमा 27 दिनों मे करता है। पर चंद्र हर वर्ष पृथ्वी से 4 सेंटीमीटर दूर हो रहा है, इस तरह 50 अरब साल बाद चंद्र को पृथ्वी की परिक्रमा करने मे 47 दिन लगेंगे, लेकिन 5 अरब साल मे तो हमारा सूर्य बुध और शुक्र के सहित पृथ्वी को भी निगल जायेगा और उससे पहले पृथ्वी पर से जीवन का नाश हो चुका होगा। पर फ़िक्र की कोई बात नहि, ये सब होने में अरबों साल अभी बाक़ी है।
हमें पृथ्वी से देखने पर चंद्रमा पर जो काले धब्बे दिखाई देते है असल में वो वहाँ की खाइयाँ और बड़े गड्ढे है। जहाँ पर सूर्यप्रकाश नहि पहोच पाता और हमें काले धब्बे जैसा दिखता है।
चंद्रमा से लाए पत्थरों से हमें ये पता चला की उसकी सतह का निर्माण लावा खड़को से हुआ था. जो धीरे धीरे ठंडा हुआ। चाँद की इस सतह पर हिलियम 3 का भंडार है, और ये एलिमेंट हमारे लिए अतिआधुनिक और अनंत ऊर्जा का स्त्रोत बन सकता है। इसी लिए हम हिलियम 3 के लिए चाँद पर जाने की तैयारियाँ कर रहे है।
अगर हम इसमें सफल हुए तो रोबोटिक वाहनो के ज़रिए हम हलियम 3 को पृथ्वी पर ला सकेंगे, और प्रदूषण रहित ऊर्जा का हम सेकडो सालों तक उपयोग कर पाएँगे। अब नासा फिर से 2024 तक चाँद पर जाने की तैयारी कर रहा है। आख़िर में अगर आप पृथ्वी पर 100kg के हो, तो चाँद पर 16.5kg के होंगे।
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