पृथ्वी के गर्भ में यूरेनियम, थोरियम और पोटेशियम क्रमिक विसर्जन के द्वारा लगातार गर्मि उत्पन्न करते रहेरे है. धरती के केंद्र का तापमान लगभग 6,000 °C होता है, इस लिए पिघले हुए खड़क और मेटल्ज़ लावा का रूप में होते है.
इस प्रवाही लावा के कारण उत्पन्न होने वाले एलेक्ट्रिक करंट के कारण पृथ्वी के चारों और चुंबकीय क्षेत्र की रचना हुई है. जो पृथ्वी की जिवसृष्टि को अवकाशी विकिरणो से बचाता है.
यहाँ एक बात याद रखो के पृथ्वी कोई लोहचुंबक नहीं है. (कई जगहों पर विध्यार्थीयो को लोगचुंबक के नाम पर पढ़ाया जाने वाला कथित विज्ञान सर्वथा ग़लत है.) पृथ्वी एक जीयोडायनेमा है. इलेक्ट्रोमैग्नेटीसम के सिद्धांत के अनुसार विधुत प्रवाह चुंबकीय क्षेत्र बनाते है और चुंबकीय क्षेत्र विधुत पैदा करता है. धरती का चुंबकीय क्षेत्र विजप्रवाह के आभारी है लोगचुंबक के नहीं.
अगर कभी लावा ठंडा होकर खड़क के रूप में जम जाता है तो इलेक्ट्रिक करंट ख़त्म हो जाएँगा, और पृथ्वी अपना चुंबकीय क्षेत्र गवाँ देंगी. चुंबकीय ढाल नाबुद होनेके बाद अंतरिक्ष से आने वाले विकिरण पृथ्वी की समस्त जिवसृष्टि को ख़त्म कर देंगे. जबकि महासागरो की गहेराइ में पलने वाले जलचर जीवों की लाइफ़ को कुछ समय का एक्सटेंशन मिलेंगा, पर वो भी ज़्यादा देर तक नहीं टिक पाएँगे.
इस तरह की क़ुदरती विपत्ति का उदाहरण लाल ग्रह मंगल है. जिसके गर्भ के प्रवाही लावा जल्द ही जम गए और नदी-तालाब वाली उसकी सतह बंजर बन गई.
ये सब कभी ना कभी तो पृथ्व के साथ भी होगा ही. पर हमारे लिए अच्छी खवर ये है के ऐसा होने में करोड़ों साल बीत जाएँगे…
-हितेशगीरी गोसाइ
आर्टिकल अच्छा लगा हो तो लाइक करके हमारा होसला बढ़ाए।
धन्यवाद।
very nice sir ese hi or bhi blogs likhte rahiye spacaly earth or space ke bare. and thanks
Sure, Thank you…
thanks sir
It also should be in English